इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की मकोय की नई किस्म
औषधीय गुणों से भरपूर मकोय (रसभरी) अब आंवले के आकार की भी मिलेगी। इसका वजन 25 ग्राम तक होगा। खट्टे – मीठे और रसीले स्वाद की मकोय की इस नई किस्म का नाम सीजी कैप गुजबेरी – 1 रखा गया है। इसके पौधे को घर की छत और आंगन सागबारी में भी लगा सकेंगे। इस मकोय में 40 फीसदी प्रोटीन, 15 फीसदी कैल्शियम, 10 फीसदी विटामिन सी और 35% फाइबर, कार्बोहाइड्रेट आदि है।
मकोय फल |
आकार और गुणों से भरपूर मकोय की यह अपनी तरह की पहली किस्म है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछले दिनों इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के दौरे पर पहुंचे तो यह कहते हुए चहक उठे कि बचपन में तो छोटे – छोटे मकोय खाए थे। यह तो आंवले जैसा बड़ा हो गया है। विवि के कृषि विज्ञानी डॉ. प्रभाकर सिंह और डॉ. घनश्याम साहू ने 27 किस्मों पर छ: वर्षों तक डॉ. पूर्णेंद्र कुमार साहू, डॉ. सरिता साहू विकास रामटेके और डॉ. विजय कुमार के साथ शोध कर इस किस्म को विकसित किया है।
औषधीय गुणों से भरपूर
आकार बड़ा होने से इसका इस्तेमाल सलाद, जूस, जैम आदि में किया जा सकेगा। यह किडनी के लिए भी लाभकारी है। रसभरी के फल, फूल, तना, मूल उदर रोगों में फायदेमंद है। पत्तियों का काढ़ा पाचन तंत्र मजबूत कर भूख बढ़ता है तथा शरीर में सूजन को कम करता है।
हर क्षेत्र में खेती संभव है
बाजार में 200-400 रुपए किलो तक बिकने वाली मकोय का पहाड़ी, मैदानी और पठारी क्षेत्र में उत्पादन संभव है। डॉ. घनश्याम साहू के अनुसार एक हेक्टेयर खेत में बोने के लिए मकोय की 200-250 ग्राम तक बीज ही पर्याप्त है। बलराम पुर के शंकरगढ़ विकासखंड के कुछ किसानों ने इसकी खेती भी शुरू कर दी है। छत्तीसगढ़ में इसे चिरपोटी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पटपोटनी तो राजस्थान में सिरपोटी कहते हैं।
औषधीय गुणों के कारण अनुसंधान कर के मकोय के आकार को बढ़ाया गया है। घर की छत पर भी इसे उगा सकते हैं।