“धारा के विरुद्ध तैरने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता है। एक अच्छे तैराक वही होता है जो विपरीत तैर कर भी अपनी मंजिल तक पहुंच जाए।”
डॉ. श्री गुरदीप सिंह जी |
इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है आयुर्वेद के जरिए समाज सेवा करने वाले आयुर्वेदिक डॉ. गुरदीप सिंह जी। डॉ. गुरदीप सिंह जी कभी इंजिनियर बनना चाहते थे, पर उनके दोस्त ने उनको आयुर्वेद कॉलेज में एडमिशन लेने की सलाह दी। उसके बाद उन्हें अहसास हुआ कि इसी के जरिए लोगों की सेवा कर सकते हैं। इसलिए खुद को आत्मसात करने के लिए डॉ. गुरदीप सिंह जी ने आयुर्वेद को चुना।
साल 2003 में गुजरात के जामनगर आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज के डीन रहे। जर्मनी, इजराइल, इंग्लैंड, फ्रांस और हंगरी में उन्होंने आयुर्वेद को बढ़ावा दिया। इसी से इन देशों की बड़ी यूनिवर्सिटी में आयुर्वेद की सीटें बढ़ी हैं। वो जामनगर गुजरात से रिटायर होने के बाद अब कर्नाटक के हसान जिले में आयुर्वेद के लिए काम कर रहे हैं। डॉ. गुरदीप सिंह जी के लिए आयुर्वेद में अपना कैरियर बनाने का सफर तय करना काफी चुनौती पूर्ण था। आइए जानते हैं कि उनके जीवन का प्रेरणादाई सफर।
बचपन में मां ने किया प्रेरित
गोहद के चक रायतपुरा गांव के रहने वाले डॉ. गुरदीप सिंह जी के पूर्वज मूलतः पंजाब के रहने वाले थे। किंतु सिंधिया महराज ने उन्हें रायत पूरा गांव में बुलाया था। लेकिन यहां आने के बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। सिंधिया राजघराने ने ही नौनेरा में 1947 में उनकी प्राइमरी तक की पढ़ाई कराई।
5 वीं के बाद गोहद में मिडिल क्लास स्कूल था, को गांव से 20 किमी दूर था। शुरू में वहां पढ़ने गए, किंतु ज्यादा दिन नहीं जा सके। जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें अपने सहेली के घर उन्हें पढ़ने के लिए भेज दिया। पर वो वहां तक ज्यादा पढ़ नहीं सके। जब वह डबरा से वापस आए तो मां ने ग्वालियर में मिलने वालों के यहां भेजा। ग्वालियर में ही उन्होंने साइंस कॉलेज से बीएससी की। इस दौरान एनसीसी बहुत अच्छी थी तो थ्योरी एग्जाम सेकंड लेफ्टिनेंट के लिए सेलेक्ट हुए। मेरठ में हुए प्रैक्टिकल में पास नहीं हुआ।
दोस्त की सलाह पर की आयुर्वेद की पढ़ाई
प्रैक्टिकल परीक्षा में पास ना होने के कारण डॉ. गुरदीप सिंह जी के लिए नौकरी का संकट गहरा गया था। जिसके कारण कोलकाता में उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के यहां 50 रुपए महीने की मुंशी की नौकरी कर ली। लेकिन नौकरी में उनका मन नहीं लगा। वो इंजिनियर बनना चाहते थे। किंतु कॉलेज की फीस इतनी ज्यादा थी कि वो इसकी पढ़ाई नहीं कर सकते थे। इसके बाद उनके एक दोस्त ने उन्हें शासकीय आयुर्वेद कॉलेज में एडमिशन लेने की सलाह दी।
ट्यूशन करके खरीदी आयुर्वेद की किताबें
दोस्त की सलाह पर डॉ. गुरदीप सिंह जी ने आयुर्वेद कॉलेज में एडमिशन ले लिया। लेकिन उनके पास किताबों को खरीदने के पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। जिससे उनकी कुछ आमदनी होने लगी। फाइनल ईयर में उन्होंने विश्वविद्यालय में टॉप किया। इससे स्कॉलरशिप मिला और कॉलेज में ही नौकरी मिल गई। जिसके बाद उन्होंने यहीं से पीएचडी की पढ़ाई पूरी की।
जामनगर कॉलेज के बने डीन
26 अगस्त 1977 को डॉ. गुरदीप सिंह जी गुजरात के जामनगर कॉलेज गए। यहां रहकर उन्होंने इम्यूनिटी बढ़ाने की दवा पर रिसर्च किया। इसका सीधा सिद्धांत था कि कैसे ऋषियों मुनियों के बारे में कहा जाता था कि वे हजारों साल जिए। डॉ. गुरदीप सिंह जी कहते थे कि इसका सीधा मतलब था कि ज्यादा वही जिएगा, जो बार – बार बीमार नहीं होगा। इसके लिए इम्यूनिटी बढ़ाना आवश्यक था। इसलिए उन्होंने इस पर शोध किया। यहां उनसे मिलने देश विदेश से लोग आने लगे। जिसके बाद वो इसी कॉलेज के डीन बन गए। जामनगर से वो 2003 में डीन के पद से रिटायर हुए।
सरकार ने किया पद्मश्री सम्मान से सम्मानित
आयुर्वेद को देश विदेश में नई पहचान दिलाने पर भारत सरकार ने डॉ. गुरदीप सिंह जी को देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया है। आयुर्वेद में अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए डॉ. गुरदीप सिंह जी कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।
आयुर्वेद को देश विदेशों में नई पहचान दिलाने वाले डॉ श्री गुरदीप सिंह जी आज सही मायने में लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सफलता की नई कहानी लिखी है। डॉ. गुरदीप सिंह जी के कार्यों को तहे दिल से सराहना करते हैं।