छत्तीसगढ़ी कविता “वाह रे कलजुग के मनखे” ll “Va Re Kalyug Ke Mankhe” Chhattisgarhi Poem ll Naval Kishor Nirmalkar

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    छत्तीसगढ़ी कविता “वाह रे कलजुग के मनखे” ll बेस्ट poem in Chhattisgarhi ll by Naval Kishor Nirmalkar

     पृथ्वी पर जीवन जीने के लिए जंगलों का होना अति आवश्यक है। जंगलों के कारण ही धरती पर वर्षा होती हैं तथा कई वनस्पतियां भी मिलती है। जंगल की वजह से हमारी धरती पर शुद्ध हवा का संचार होता है। जंगल कई जानवरो और पक्षियों का घर भी है। वर्तमान समय में मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है और इसी कारण वह जंगलों को उजाड़ रहा है। लगातार हो रही पेड़ की कटाई के कारण वन भूमि कम हो रही है।

    ‘वा रे कलजुग के मनखे’ छत्तीसगढ़ी कविता

    वनों का बचाओ और संरक्षण बहुत जरूरी है। वनों का सरंक्षण होगा तो वनस्पति और वन्य जीवों का भी सरंक्षण होगा। भारत में वन नीति के अनुसार भारत के भूभाग पर 33 फीसदी वन होना चाहिए, परंतु यह सिर्फ भारत के 15 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों तक ही सिमट कर रह गया है। आज हमारी वन भूमि खतरे में पड़ती जा रही है या फिर कह लीजिए पड़ गई है।

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    आज वनों की कटाई नहीं रुकी तो आने वाला समय मानव जाति के लिए विकट होने जा रहा है। जीवन के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है और यह प्राण ऊर्जा पेड़ पौधों से मिलती है। 

    अगर हम जल्द ही जागरूक नहीं हुए तो हमारी सारी समझदारी व्यर्थ चली जायेगी। 

    Best poem in Chhattisgarhi

    दोस्तों आज इस पोस्ट में मैं अपनी लिखी हुई छत्तीसगढ़ी कविता “वा रे कलजुग के मनखे” आप लोगों के साथ शेयर करने जा रहा हूं। मैं कोई बड़ा कवि या लेखक नहीं हूं, मैने छत्तीसगढ़ी में छोटी सी कविता लिखने का प्रयास किया हूं। मैने इसमें छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनो भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया हूं।

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    🏞️🌳”वा रे कलजुग के मनखे”🌳🏞️

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    वा रे कलजुग के मनखे,

    वा रे कलजुग के मनखे,


    1. जेन माटी मा जनम लेके,

    खेल कूद के बड़े होय हस,

    आज उही माटी के एक अंग ला काटत हस,

    वा रे कलजूग के मनखे…


    2. जीहि माटी बर देश के जवान,

    अपन जान न्यौछावर कर देथे,

    आज उही माटी के एक अंग ला काटत हस,

    वा रे कलजुग के मनखे…


    3. जेन जंगल हा हमन ला फल-फुल,

    सांस ले बर शुद्ध हवा देथे,

    अऊ अब्बड़ अकन चीज प्रदान करथे, उहीला काटत हस,

    वा रे कलजुग के मनखे…


    4. दूसरा के इच्छा ला पूरा करे बर,

    पर बुधिया मनखे,

    अपन माता के कोख के सौदा करत हस,

    वा रे कलजुग के मनखे…


    5. पेड़ लगावव, पेड़ बचावव,

    पेड़ हा माटी के शान हे कहीथो,

    अऊ आज उहि माटी के एक अंग ला काटत हस,

    वा रे कलजुग के मनखे…

    -Naval kishor Nirmalkar

    Dhamtari (CG)

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    दोस्तों उम्मीद करता हूं कि यह कविता आप लोगों को अच्छी लगी होगी। इस कविता को अपने मित्रों या रिश्तेदारों के साथ शेयर कर सकते हैं। और comment में आप लोग अपना विचार व्यक्त कर सकते हैं।

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