“लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती”
यह पंक्तियां भारतीय क्रिकेट के पहले सुपर स्टार कहे जाने वाले “श्री कपिल देव जी” के जीवन पर सटीक बैठता है।
श्री कपिल देव जी |
भारत में शुरू से ही क्रिकेट का हर कोई दीवाना रहा है, लेकिन क्रिकेट को घर – घर तक पहुंचाने का श्रेय श्री कपिल देव जी को ही जाता है। उन्होंने साल 1983 में भारत को पहला क्रिकेट विश्व कप का विजेता बनकर न केवल इतिहास रच दिया था बल्कि बच्चों से लेकर बुजर्गों तक के दिलों में क्रिकेट को खास पहचान दिलाया था। इस महान खिलाड़ी ने भारत में पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड कप लाने का कार्य किया था। जिसको उस समय किसी ने भी अपने में भी नहीं सोचा था। अनहोनी को होनी करने वाले “श्री कपिल देव जी” के जीवन की प्रेरक तथा रोचक कहानी के बारे में जानते हैं।
बचपन से ही खेलने का शौक था
6 जनवरी 1959 को हरियाणा के चंडीगढ़ में जन्में श्री कपिल देव जी का परिवार बंटवारे के बाद चंडीगढ़ में आकर रहने लगे। कपिल देव जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी स्कूल से प्राप्त किया। जिसके बाद वह स्नातक की पढ़ाई के लिए सेंट एडवर्ड कॉलेज गए। श्री कपिल देव जी को बचपन से ही खेलकूद में बहुत शौक था, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा क्रिकेट पसंद था। कॉलेज के दिनों में वो ज्यादा समय क्रिकेट को ही दिया करते थे, जिसके कारण उनके खेल में बहुत निखार आता गया। एक तेज गेंदबाज बनने के लिए फिटनेस कितनी जरूरी होती है इस बात को कपिल देव जी उस समय भी बखूबी जानते थे। इसलिए अपने कंधे मजबूत रखने के लिए श्री कपिल देव जी लकड़ियां तोड़ा करते थे। क्रिकेट के प्रति उनका यही जुनून देखकर उनके घर वालों ने उन्हें क्रिकेट के गुण से अवगत कराने का फैसला किया।
ऐसे की क्रिकेट खेलने की शुरुआत
श्री कपिल देव जी में प्रतिभा कूट कूट कर भरी हुई थी लेकिन क्रिकेट के कुछ तकनीकी सुधार की भी जरूरत थी। उनकी कमियों को दूर करने में उनके कोच “श्री देशप्रेम आजाद जी” ने उनकी बहुत मदद की। देशप्रेम आजाद जी के कोचिंग में श्री कपिल देव जी ने अपनी गेंदबाजी के साथ साथ बल्लेबाजी में भी खूब मेहनत करने लगे और इसके परिणाम स्वरूप नवंबर 1975 में रणजी खेलने के लिए हरियाणा टीम से चुना गया।
अपने प्रदर्शन की बदौलत भारतीय क्रिकेट में बनाई जगह
श्री कपिल देव जी ने अपने पहले ही घरेलू मैच में 6 विकेट निकालकर अपनी प्रतिभा का परिचय सभी को दे दिया था। उन्होंने हरियाणा की तरफ से कुल 30 मुकाबले खेले। जिसमें उन्होंने 121 विकेट निकाल सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इसमें भारतीय क्रिकेट बोर्ड भी अछूता नहीं रहा। उनके यही शानदार प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें 1978 में भारतीय टीम में खेलने का मौका मिला। साल 1978 में पाकिस्तान के दौरे पर श्री कपिल देव जी ने 1 अक्टूबर 1978 में पहला एक दिवसीय मैच खेला। अयूब नेशनल स्टेडियम कोटा पाकिस्तान में खेला गया मैच श्री कपिल देव जी के लिए कुछ खास नहीं रहा। उन्होंने 8 ओवर में 27 रन देकर केवल 1 विकेट ही निकली और बल्लेबाजी में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं मिला। इस पूरी श्रृंखला में खेले गए तीन मैचों में उन्हें केवल 18 रन बनाए और 4 विकेट ही निकल पाए।
ऐसे बने बेहतरीन ऑलराउंडर
श्री कपिल देव जी ने बेहतरीन बल्लेबाजी से सन् 1979-1980 में उन्होंने दिल्ली के खिलाफ 193 रन की नाबाद पारी खेलकर हरियाणा को शानदार जीत दिलाई। ये उनके कैरियर का पहला शतक था। जिसके बाद साबित हो गया कि श्री कपिल देव जी सिर्फ गेंदबाजी से ही नहीं बल्कि बल्लेबाजी से भी भारत को जीत दिला सकते हैं। इनकी दोनों प्रतिभाओं की बदौलत इनको अभी तक का सबसे बेहतरीन ऑलराउंडर माना जाता है। 17 अक्टूबर सन् 1979 में वेस्टइंडीज के खिलाफ उन्होंने 124 में 126 रन बनाए थे। इसको इनकी एक यादगार पारी के रूप में गिना जाता है।
खराब फॉर्म के बाद किया कमबैक
श्री कपिल देव जी को भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट में भी खेलना का मौका मिला लेकिन एक दिवसीय क्रिकेट में उन्हें लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा। लेकिन श्री कपिल देव जी मेहनत करते रहे और अपने प्रदर्शन में सुधार लाते गए। उन्होंने अपने ऑलराउंडर प्रदर्शन से कई बार भारतीय टीम की जीत में अपना अमूल्य योगदान दिया। 1982-1983 में श्रीलंका के खिलाफ खेले जाने वाले मैचों के लिए सबको चौकाते हुए श्री कपिल देव जी को भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया।
भारतीयों के मन में ऐसे जगाई थी जितने की उम्मीद
साल 1983 में क्रिकेट विश्व कप का आयोजन किया गया। हालांकि पिछले विश्व कप में भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखने के बाद किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि भारत विश्व कप जीत सकता है। जब श्री कपिल देव जी ने वर्ल्ड कप में खेलना शुरु किया था तब इनका औसत सामान्य बॉलर की तरह ही था। भारत को सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए जिम्बाम्बे से मैच जीतना आवश्यक हो गया था। उस मैच के दौरान भारत लगभग हार की ओर बढ़ रहा था कि श्री कपिल देव जी ने अपनी शानदार बल्लेबाजी की बदौलत मैच संभाल लिया।
इसी मैच के दौरान इन्होंने 175 रन बनाकर जिम्बाब्वे की गेंदबाजी को धोकर रख दिया। क्योंकि इन्होंने सिर्फ 138 गेंदों में ये रन बनाए थे। जिसमें इन्होंने 22 बाउंड्रीज, 16 चौके और 6 छक्कों की मदद से लगाई थी। 9 वें क्रिकेट के लिए 126 रन की सबसे बड़ी साझेदारी किरमानी (22 रन) एवं श्री कपिल देव जी के बीच हुई थी, जिसको 27 सालों तक कोई तोड़ नहीं पाया था। इतना ही नहीं इसी मैच में श्री कपिल देव जी ने शानदार गेंदबाजी करते हुए जिम्बाम्बे के 5 विकेट भी लिए थे।
भारत को जिताया पहला विश्व कप
भारत को 1983 अपना पहला विश्व कप जीतने के लिए वेस्टइंडीज को फाइनल में हराना पड़ा था। भारत ने श्री कपिल देव जी की कप्तानी में 1983 में इंग्लैंड में होने वाले वर्ल्ड कप को जीतकर इतिहास रच दिया था। क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया और सेमीफाइनल में इंग्लैंड को हरा कर भारतीय टीम पहली बार वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचीं थी। उस समय भारतीय टीम को विश्व कप की मजबूत और प्रबल दावेदार वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच खेलना था।
इसी के परिणाम स्वरूप वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजो के सामने भारतीय पारी फाइनल में केवल 180 रनों पर ऑल आउट हो गई। जिसे देखकर सभी की भारतीय टीम वर्ल्ड कप जीतने की उम्मीद खत्म हो गई थी। लेकिन श्री कपिल देव जी हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने और उनके साथी गेंदबाजों ने सटीक गेंदबाजी से वेस्टइंडीज के बल्लेबाजों के सामने मुश्किलें पैदा करना शुरू कर दिया और इसी दबाव में वेस्टइंडीज थोड़ी – थोड़ी देर पर अपने विकेट गवांते रहे। जिसके कारण केवल 140 रनों पर अपने 10 विकेट गंवा दिए। और इस तरह भारतीय टीम ने 1983 वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला जीत लिया। पूरे विश्व क्रिकेट को चौंकाते हुए भारतीय टीम नई विश्व विजेता बनकर दुनिया के सामने आई।
कई बड़े पुरस्कारों से हुए हैं सम्मानित
भारत को पहला विश्व कप जिताने वाले श्री कपिल देव जी ने अपने जीवन में कई उपलब्धियों को हासिल किया है। साल 1979-1980 के सत्र में क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने की वजह से भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया था। यही नहीं साल 1982 के दौरान भारत ने श्री कपिल देव जी की प्रतिभा और लगन को देखकर पद्म श्री का पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। साल 1983 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर का सम्मान दिया गया था।
इन्होंने 1994 में रिचर्ड हेडली का टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट हासिल करने का रिकार्ड तोड दिया था। इतना ही नहीं टेस्ट क्रिकेट में 400 विकेट के साथ साथ अपने 4000 रन पूरे करने वाले अभी तक के विश्व के उच्चतम खिलाड़ी हैं। साल 1991 में श्री कपिल देव जी के योगदान एवं लगन को सम्मानित करने के लिए पद्म भूषण जैसा उच्चतम पुरस्कार दिया गया। सन् 2010 आईसीसी क्रिकेट हॉल ऑफ फेम पुरस्कार देकर इनकी प्रतिभा को सम्मानीय दर्जा दिया गया था। इसके साथ ही वो अन्य कई सम्मान से भी सम्मानित हो चुके हैं।
श्री कपिल देव जी के जीवन पर बन चुकी है फिल्म
भारत के सबसे सफल कप्तान में से एक श्री कपिल देव जी के जीवन पर आधारित हाल ही में फिल्म भी बन चुकी है। 83 नाम से विख्यात इस फिल्म में अभिनेता रणवीर सिंह ने श्री कपिल देव जी की भूमिका अदा की है। जिसमें 1983 विश्व कप जीतने का सफर दिखाया गया है।
श्री कपिल देव जी ने अपनी शानदार कप्तानी और प्रदर्शन की बदौलत भारतीय टीम को पहली बार वर्ल्ड कप जिताया था। 1994 में श्री कपिल देव जी ने 35 साल की उम्र में क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से सन्यास ले लिया था। लेकिन आज भी क्रिकेट में खेली गई उनकी कई पारियां लोगों को याद है। श्री कपिल देव जी ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर सफलता की नई कहानी लिखी है। आज वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।