राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

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     बैगा-माड़िया जनजाति के प्रमुख लोक नृत्य

    छत्तीसगढ़ की बैगा-माड़िया जनजाति की लोक नृत्य


    बैगा जनजाति का प्रकृति एवं वनों से निकट का संबंध है। जिसका बखान इनके लोक संस्कृति में व्यापक रूप से देखने को मिलता है। बैगा जनजाति की माताएं, महिलाएं अपने प्रेम एवं वात्सल्य से देवी – देवताओं और अपनी संस्कृति का गुणगान गायन के माध्यम से एवं नृत्य से  बच्चों को परिचित करने का प्रयास करती है। साथ ही बैगा जनजाति की माताएं अपने छोटे बच्चों को सीखने एवं वात्सल्य के रूप में रीना का गायन करती है। वेशभूषा में महिलाएं सफेद रंग की साड़ी धारण करती है, गले में सुता – माला, कान में ढार, बांह में नागमोरी, हाथ में चूड़ी, पैर में कांसे का चूड़ा एवं ककनी – बनुरिया से श्रृंगार करती है। वाद्य यंत्रों में ढोल, टिमकी, बांसुरी, ठिसकी और पैजना आदि का प्रयोग किया जाता है।

    सैला बैगा जनजाति के पुरुषों के द्वारा सैला नृत्य शैला इष्ट देव एवं पूर्वज देव जैसे – करमदेव, ग्राम देव, ठाकुर देव, धरती माता तथा कुल देव नांगा बैगा, बैगिन को सुमिरन कर अपने फसलों के पक जाने पर धन्यवाद के रूप में अपने परिवार के सुख – समृद्धि की स्थिति का एक दूसरे को सैला गीत एवं नृत्य के माध्यम से बताने का प्रयास किया जाता है। इनकी वेशभूषा पुरुष धोती, कुरता, जैकेट, पैर में पैजना, पगड़ी, गले में रंगबिरंगी सुता माला पहनते हैं। वाद्य यंत्रों में मांदर, ढोल, टिमकी, बांसुरी, पैजना आदि का प्रमुख रूप से उपयोग करते हैं।

    • राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

    राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक गीत, नृत्य और संपूर्ण कलाओं से देश और विदेश परिचित होगा। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यह आयोजन 28 से 30 अक्टूबर तक किया जा रहा है। राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान आयोजन के लिए सज कर तैयार हो चुका है। इस महोत्सव में बहुत से राज्यों के आदिवासी लोक नर्तक दल के अलावा देश-विदेश के नर्तक दल भी अपनी प्रस्तुति देंगे। 

    छत्तीसगढ़ राज्य की 5 विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक बैगा जनजाति है। राज्य के मुंगेली, राजनांदगांव, कबीरधाम (कवर्धा), बिलासपुर, और कोरिया जिले में निवासरत है। बैगा जनजाति अपने ईष्ट देव की स्तुति, तीज – त्योहार, उत्सव एवं मनोरंजन की दृष्टि से विभिन्न लोकगीत एवं नृत्य का गायन समूह में करते है। इनके लोक गीत और नृत्य में करमा, रीना – सैला, बिहाव, ददरिया, फाग आदि प्रमुख हैं। दंडामी माडिया जनजाति गोंड जनजाति की उपजाति है। 

    सर W.V. ग्रिगसन ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ “द माडिया” में माडिया जनजाति के सदस्यों द्वारा नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट के आधार पर “बायसन हॉर्न माडिया” जनजाति नाम दिया है। प्रसिद्ध मानव वैज्ञानिक वेरियर एल्विन का ग्रंथ “द माडिया – मर्डर एंड सुसाइड” (1941) दंडामी माड़िया जनजाति पर आधारित है। बैगा और माड़िया जनजाति के रीति रिवाजों पर आधारित प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार है।

    रीना सैला नृत्य : बैगा जनजाति का प्रकृति एवं वनों से संबंध है। बैगा जनजाति की महिलाएं अपने प्रेम एवं वात्सल्य से देवी – देवताओं और अपनी संस्कृति का गुणगान गायन के माध्यम से उनमें गीत और नृत्य से बच्चों को परिचित करने का प्रयास करती है। वेशभूषा में महिलाएं सफेद रंग की साड़ी, गले में सुता माला, कान में ढार, बांह में नागमोरी, हाथ में चूड़ी, पैर में कांसे का चूड़ा एवं ककनी, बनूरिया से श्रृंगार करती है। वाद्य यंत्रों में टिमकी, बांसुरी, ढोल, ठिसकी, पैजना आदि का प्रयोग किया जाता है।

    सैला बैगा जनजाति के पुरुषों के द्वारा सैला नृत्य सैला ईष्ट देव एवं पूर्वज देव जैसे – करमदव, ग्राम देव, ठाकुर देव, धरती माता, कुल देव नांगा बैगा, बैगिन को सुमिरन कर अपने फसलों के पक जाने पर धन्यवाद स्वरूप अपने परिवार के सुख समृद्धि की स्थिति का एक दूसरे को सैला गीत एवं नृत्य के माध्यम से बताने का प्रयास किया जाता है। इसकी वेशभूषा पुरुष धोती, कुरता, पगड़ी, पैर में पैजना, गले में रंगबिरंगी सुता माला पहनते हैं। वाद्य यंत्रों में मांदर, ढोल, टिमकी, बांसुरी, पैजना आदि का प्रमुख रूप से उपयोग करते हैं। यह नृत्य प्रायः कार्तिक माह के बीच मनाए जाने वाले उत्सवों त्योहारों में किया जाता है। 

    दशहरा करमा नृत्य : बैगा जनजाति समुदाय द्वारा करमा नृत्य भादो पुन्नी से माघी पूर्णिमा के समय किया जाता है। इस समुदाय के पुरुष सदस्य दूसरे गांवों में जाकर करमा नृत्य के लिए गांवों के सदस्यों का आवाहन करते हैं। इसके बाद प्रश्नोत्तरी के रूप में करमा नृत्य एवं गायन किया जाता है। इसी प्रकार अन्य गांव से आमंत्रण आने पर भी बैगा स्त्री – पुरुष के दल द्वारा करमा किया जाता है। अपने सुख – दुख को एक – दूसरे को प्रश्नोत्तरी के रूप में गीत और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इस नृत्य में महिला सदस्यों द्वारा विशेष श्रृंगार किया जाता है। जिसमें यह खादी का प्रायः लाल एवं सफेद रंग की साड़ी, लाल रंग की ब्लाउज, सिर पर मोर पंख की कलगी, कानों में ढार, बांह में नागमोरी, कलाई में रंगीन चूड़ियां और पैरों में पैजनिया तथा विशेष रूप से सिर के बाल से कमर के नीचे तक बीरन घास की बनी लड़ियां पहनती है, जिनसे इनका सौंदर्य एवं श्रृंगार देखते ही बनता है। पुरुष समुदाय भी श्रृंगार के रूप में सफेद रंग की धोती, कुरता, काले रंग की कोट और गले में आवश्यकतानुसार माला धारण करते हैं। 

    करसाड़ नृत्य : दंडामी माड़िया जनजाति के नृत्य के दौरान पहनें जाने वाले गौर सिंग मुकुट, बस्तर, दशहरा के अंतिम दिनों में चलने वाले बहुत बड़ा लकड़ी के रथ को खींचने का विशेषाधिकार और स्वभाव के लिए प्रसिद्ध है। नृत्य के प्रदर्शन का अवसर दंडामी माड़िया जनजाति में करसाड नृत्य वार्षिक करसाड़ जात्रा के दौरान धार्मिक उत्सव में करते हैं। करसाड दंडामी मड़िया जनजाति का प्रमुख त्योहार है। 

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