समाज की रूढ़ियां कब पैरों की बेड़ियां बन जाती है, यह पता ही नहीं चलता। महिलाओं को शुरू से ही केवल घर का काम करने के लिए ही समझा जाता है। हमेशा यही समझा जाता है कि महिलाओं का जन्म केवल पुरुषों की गुलामी करने के लिए ही हुआ है। लेकिन इस भ्रम को तोड़नेका काम किया है, छत्तीसगढ़ की लोकगायिका तिजनबाई जी ने। तीजन बाई ने महाभारत की कथा को पंडवानी गायन के जरिए देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है।
डॉक्टरेट की उपाधि और देश के दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित छत्तीसगढ़ की पंडवानी गायिका डॉ. तीजन बाई को हाल ही में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आज उनकी गायकी की गूंज देश से लेकर विदेशों तक है। लेकिन तीजन बाई के लिए समाज के तानों को सहते हुए पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष से सफलता तक का प्रेरणादाई सफर।
बचपन से ही किया संघर्ष
तीजन बाई पंडवानी की कापालिक शैली की गायिका है। इतनी प्रसिद्धि प्राप्त करने का उनका यह सफर काफी कठिनाइयों भरा था। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के भिलाई के गांव गनियारी में जन्मी तीजन बाई अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते सुनाते देखती थी। धीरे – धीरे उन्हें ये सब याद होने लगा। जिसके बाद वो भी साथ साथ गाने लगी। तीजन बाई की मां को उनका इस तरह से गाना बिलकुल पसंद नहीं था। जब तीजन बाई ने पंडवानी गाना शुरू किया था।
उनके परिवार वालों ने बंदिशें लगा दी। समाज ताना मारने लगा। यही नहीं लड़की होने के नाते उस समाज में गाना गाने पर पाबंदी थी। इसलिए तीजन बाई को कमरे में बंद कर दिया जाता था और खाने को भी नहीं दिया जाता था। वो कई दिनों तक कमरे में बंद रहती, लेकिन इस सबके बावजूद भी तीजन बाई ने हार नहीं मानी। 12 साल की उम्र में तीजन बाई की शादी उनके परिवार वालों ने कर दी। ससुराल वालों को कतई मंजूर ना था कि वह पंडवानी गाए। लेकिन वो रात में पंडवानी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए चुप-चाप घर से निकल जाती। जिसके बाद उनके पति ने उन्हें घर से निकाल दिया।
गीतकार उमेद सिंह देशमुख ने पहचानी उनकी प्रतिभा
तीजन बाई के जीवन में रोचक मोड़ तब आया जब एक कार्यक्रम में मौजूद एक गीतकार उमेद सिंह देशमुख ने उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया। जिसके बाद मात्र 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति पेश की। उस समय महिलाएं बैठकर प्रस्तुति दिया। लेकिन रिवाजों को तोड़ते हुए उन्होंने पुरुषों की तरह पंडवानी का गायन किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने दी गायन की प्रस्तुति
तीजन बाई के गायन को सुनकर प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने प्रदर्शन करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया। उन्होंने अपने गायन से इंदिरा गांधी को भी उनका कायल कर दिया था। जिसके बाद उनकी प्रसिद्धि देश विदेशों में भी फैल गई। 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया, इंग्लैंड, फ्रांस, स्वीटजरलैंड और मरिशस की यात्रा की और वहां पर अपने गायन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पद्मविभूषण, पद्म श्री सहित कई सम्मान से हो चुकी है सम्मानित
तीजन बाई पहली महिला कलाकार हैं। उन्होंने कभी भी औपचारिक शिक्षा नहीं ली है। लेकिन फिर भी 2017 में तीजन बाई को खैरागढ़ यूनिवर्सिटी ने डिलीट की उपाधि दी है। डॉ. तीजन बाई को कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया है। यही नहीं उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। इसके साथ ही उन्हें महिला नौ रत्न, कला शिरोमणि सम्मान, आदित्य बिरला कला शिखर सम्मान से भी नवाजा गया है।
तीजन बाई ने कभी भी हालातों के आगे घुटने नहीं टेके। उन्होंने जीवन में कभी हार नहीं मानी। उन्हें खुद पर पूरा विश्वास था कि वो अपनी सफलता की कहानी जरूर लिखेंगी और दूसरों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बनेंगी। आज वो लाखों लोगों के लिए एक मिसाल बन गई हैं। उनकी सफलता की कहानी कई लोगों को प्रेरित करने वाली है।