आज भारत के कोने – कोने में प्राचीन कला और उनकी कलाओं को जीवित रखने वाले कलाकार मौजूद हैं। इन कलाकारों ने केवल भारतीय कला एवं संस्कृति को आज तक जीवित रखा है। बल्कि देश – विदेश में उसे एक अलग पहचान भी दिलाई है। इन्हीं महान कलाकारों में से एक हैं, छत्तीसगढ़ के रहने वाले पंथी नर्तक डॉ. राधेश्याम बारले जी। डॉ. राधेश्याम बारले ने अपनी कला साधना से छत्तीसगढ़ और देश को गौरवान्वित किया है।
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. राधेश्याम बारले |
डॉ. राधेश्याम बारले जी लोक कला पंथी नृत्य के ख्यात नर्तक है। पंथी नृत्य के माध्यम से उन्होंने बाबा गुरु घासीदास के संदेशों को देश – दुनिया में प्रचारित और प्रसारित करने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। उन्होंने विलुप्त होती संस्कृति को आज भी अपनी नृत्य कला के जरिए जीवित रखा है। यही कारण है कि उनकी नृत्य कला और लगन को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है। डॉ. राधेश्याम बारले के लिए अपनी नृत्य कला से देश – विदेश में ख्याति प्राप्त करने का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणा दायक सफर।
एमबीबीएस करने के साथ लोक संगीत की भी ली शिक्षा
9 अक्टूबर 1966 को छत्तीसगढ़ के दुर्गल जिले के पाटन तहसील के ग्राम खोला में जन्म लिए डॉ. राधेश्याम बारले जी ने एम बी बी एस की पढ़ाई के साथ-साथ इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से लोक संगीत में डिप्लोमा किया है। डॉ. राधेश्याम बारले जी को बचपन से पंथी नृत्य के बारे में बचपन से ही रुचि थी। क्योंकि बहुत कम उम्र में ही उन्होंने यह नृत्य शुरू कर दिया था।
पंथी नृत्य को देश – विदेश में दिलाई पहचान
डॉ. राधेश्याम बारले जी ने पंथी नृत्य करने के साथ – साथ देश – दुनिया में भी लोगों को इसका प्रशिक्षण दिया है। डॉ. बारले ने बाबा घासीदास के संदेशों को लोगों तक पहुंचाने के साथ दुनिया के अलग – अलग देशों के कलाकारों को पंथी नृत्य की ट्रेनिंग दी है। अमेरिका और मास्को के कई कलाकारों को डॉ. बारले ने पंथी नृत्य से अवगत कराया है और उन्हें छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति से परिचय कराया है।
डॉ. बारले के नाम ही यह रिकॉर्ड कायम है जिन्होंने देश के अलग – अलग चार राष्ट्रपतियों के समक्ष अपनी नृत्य कला का परिचय दिया है। दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में डॉ. राधेश्याम बारले जी को अक्सर देखा और सुना जा सकता है। जहां वे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं, इसके अलावा देश – विदेश के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी उनकी भागीदारी देखी जाती है।
अपने नृत्य से दर्शकों का मोह लेते हैं मन
पंथी नृत्य में होने वाले नाटकों में डॉ. राधेश्याम बारले महिला नर्तक का रूप धारण करते थे और नृत्य करते हैं। भोरमदेव, सिरपुर, खजुराहो और देश में अन्य जगहों पर होने वाले महोत्सवों में डॉ. बारले अपनी नृत्य शैली से लोगों का मन मोह लेते हैं। राज्य अथवा राष्ट्रीय स्तर के लगभग हर कार्यक्रम में उनके नृत्य को देखा जा सकता है। यहां तक की नक्सल प्रभावित इलाकों में भी डॉ. बारले ने अपनी नृत्य शैली से शांति का संदेश दिया है और युवाओं को हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की है।
क्या होता है पंथी नृत्य
पंथी नृत्य में सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरु घासीदास के जीवन और उनके उपदेशों का गायन किया जाता है। इस नृत्य में एक मुख्य नर्तक होता है जो गायन की शुरुआत करता है और उसके साथ बाकी साथी नृत्य और गायन करते हैं। डॉ. बारले मुख्य नर्तक होते हैं जो बाबा घासीदास के गायन और उपदेश को शुरू करते हैं। उनके साथ बाकी नर्तक उसे दोहराते हैं और गायन करते हैं।
यह नृत्य बहुत धीमी गति से शुरू होता है और इसके साथ मांदर की ताल बजती है। धीरे-धीरे गायन और नृत्य बढ़ता जाता है। अंत में गायन खत्म होने से पहले नृत्य और गायन काफी तेज हो जाता है। नृत्य की इस शैली में मांदर और झांझ बजाया जाता है। यही दोनों मुख्य वाद्ययंत्र होते हैं। नृत्य की इस शैली में नर्तक अपने पैरों में घुंघरू बांध कर नृत्य करते हैं।
पद्मश्री सहित कई सम्मान से हो चुके हैं सम्मानित
पंथी नृत्य को नई पहचान दिलाने वाले डॉ. राधेश्याम बारले जी कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। डॉ. बारले को उनकी कला साधना के लिए भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है। इसके साथ ही उन्हें कई अन्य सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
पंथी नृत्य को देश विदेश में पहचान दिलाने वाले डॉ. बारले आज सही मायने में लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने अपनी कला और मेहनत के दम पर सफलता की कहानी लिखी है।