अगर इंसान कुछ करना चाहे तो वो नदियों को चीर कर अपना रास्ता खुद बना सकता है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है 4 फीट 2 इंच के पैरा एथलीट श्री केवाई वेंकटेश जी। जिन्होंने अपने प्रतिभा के जरिए दुनिया को यह दिखा दिया कि सफलता हासिल करने की कोई उम्र, कोई कद - काठी या रूप रंग नहीं होता। सफलता हासिल करने के लिए बस आपके हौसलों में जान होनी चाहिए।
श्री केवाई वेंकटेश जी पद्मश्री सम्मान से सम्मानित |
कर्नाटक के रहने वाले श्री केवाई वेंकटेश जी ने अपने कैरियर की शुरुआत साल 1994 में की थी। जब उन्होंने जर्मनी में आयोजित पहले पैरालिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इसी के साथ 2009 में पांचवे पैरालिंपिक खेलो में उन्होंने भारत का नेतृत्व किया था। खेल और इसके विकास में उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। लेकिन कम लंबाई होने के कारण श्री केवाई वेंकटेश जी को कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं कि उनके जीवन का प्रेरणादाई सफर।
बीमारी के कारण नहीं बढ़ पाई लम्बाई
कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्में श्री केवाई वेंकटेश जी बचपन से ही अकोंद्रोप्लासिया बीमारी के शिकार हो गए थे। Achondroplasia नाम की शारीरिक विकास में बाधा लाने वाली एक बीमारी है, जो एक हड्डी विकास विकार है, इससे बौनापन होता है। इसी बीमारी से ग्रसित होकर उनके शरीर की वृद्धि 4 फीट 2 इंच पर आकर रुक गई।
कमजोरी को बनाया ताकत
कम लंबाई के कारण श्री वेंकटेश जी को कई तरह की परेशानियों को भी झेलना पड़ा। लोग उनकी कम लंबाई का मजाक भी उड़ाते थे। लेकिन उन्होंने इस बीमारी के आगे कभी घुटने नहीं टेके और कुछ अलग करने की ठानी। उन्होंने अपने जीवन को नया मोड़ देते हुए पैरा एथलीट खेलों में अपना कैरियर बनाने की ठान ली।
पैरा एथलीट के रूप में लगा दी रिकॉर्ड्स की झड़ी
श्री केवाई वेंकटेश जी ने 50 साल पुराने बहुक्रियाशील पैरास्पोर्ट्स को चुना। श्री केवाई वेंकटेश जी ने अपना कैरियर 1994 में शुरू किया जब उन्होंने बर्लिन, जर्मनी में पहली अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति एथलेटिक्स विश्व चैंपियन शिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसी के साथ 2009 में पांचवे पैरालंपिक खेलों में भारत का नेतृत्व किया था। उस साल देश ने 17 पदक जीते थे। वेंकटेश जी ने अपने प्रदर्शन से कई रिकॉर्ड अपने नाम कर देश को गौरवान्वित किया था। उनका नाम वर्ल्ड ड्वार्फ गेम्स, 2005 में सबसे अधिक पदक जीतने के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया था। वह खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले भारतीय एथलीट थे और एथलीट में पदक जीते थे। अब वह सेवानिवृत हो गए, वह कर्नाटक पैरा बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव के रूप में कार्य करते हैं।
पद्मश्री सहित कई सम्मान से हो चुके हैं सम्मानित
भारतीय पैरा एथलीट श्री केवाई वेंकटेश जी कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। पैरा एथलीट के रूप में भारत का नाम रोशन करने वाले श्री केवाई वेंकटेश जी ने 1994 में, बर्लिन में पहली अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति द्वारा आयोजित विश्व चैंपियन शिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कई पदक हासिल किए थे। इसके बाद तो उन्होंने कई एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बैडमिंटन जैसे कई खेलों में जीत हासिल कर पदक जीतना शुरू कर दिया।
5 साल बाद श्री केवाई वेंकटेश जी ने शॉटपुट के लिए एक बहु विकलांगता चैंपियन शिप में अपना पहला इंटरनेशनल गोल्ड मेडल जीता था। साल 2002 में, एलजी विश्वकप खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए केवाई वेंकटेश जी ने बैडमिंटन के लिए एक सिल्वर मेडल, शॉट - पुट, डिस्कस थ्रो और भाला फेंक में तीन गोल्ड मेडल प्राप्त किए। यही नहीं उनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है।
श्री केवाई वेंकटेश जी ने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाते हुए सफलता की नई कहानी लिखी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह से श्री केवाई वेंकटेश जी ने पूरे विश्व के सम्मुख भारत का नाम ऊंचा किया है। वो उन्हें लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनाता है। हम श्री केवाई वेंकटेश जी की मेहनत और खेलों में उनके अद्भुत प्रदर्शन की तहे दिल से सराहना करता है।
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